Tuesday, February 10, 2009

विज्ञापनों में महिला का चरित्र.... विरोध में गुलाबी चड्ढी कब?

एक नई मोटरसाइकिल का टीवी पर विज्ञापन देखा। महिलाओं के चरित्र पर विज्ञापन जगत का एक और हमला देखने को मिला। मोटरसाइकिल देख कर एक लड़की अपने बेटी को दीदी की बेटी, एक अपने प्रेमी को भाई बना लेती है। सिर्फ़ उस नई मोटरसाइकिल वाले लड़के के लिए। क्या ऐसा होता है कि लड़कियां सिर्फ़ मोटरसाइकिल आदि जैसी वस्तुओं के लिए प्यार करती हैं। मुझे इस विज्ञापन का मतलब लड़कों के लिए भी कुछ ठीक नही लगा। कोई शरीफ इंसान ऐसी लड़की से प्यार नही करना चाहेगा जो मोटरसाइकिल देखकर प्यार करे क्योंकि कल वो लड़की किसी और वस्तु के लिए उस लड़के को छोड़ सकती है।

ये तो कुछ भी नही एक डेओ के विज्ञापन में एक लड़की डेओ की महक की वजह से उस डेओ लगाये लड़के साथ सेक्स के बारे में सोचती है।

मैंगलोर में जो हुआ उस से बुरा हमला लड़कियों और भारतीय संस्कृति पर ये विज्ञापन हैं। कोई महिला संगठन या कोई श्री राम या शिव सेना इसके ख़िलाफ़ हल्ला क्यो नही बोलती। कोई महिला इन विज्ञापनों के विरोध के लिए पिंक चड्ढी क्यों नही भेजती? क्या लड़कियां सिर्फ़ इन वस्तुओं के लिए प्यार करती हैं? क्या सिर्फ़ एक डेओ की महक से ये अपने जिस्म को लड़को के हवाले कर देती हैं।