मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 
ये अजीब सी तसवीरें हैं 
उभरती मेरे ज़हन में 
इन्हें रोक ले 
वो नज़र भी नहीं मिलती 
मैं उलझा हूँ
न जाने कितने दर्द में 
सुलझा तो लूँ पर उस सिरे की 
डोर तलक नहीं मिलती 
मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 
मुझे इंसान समझे जो 
वोह इंसान नहीं मिला 
मुझे होता होगा दर्द 
ये ख्याल नहीं दिखा 
अश्क मेरे भी निकलते हैं 
चोट मुझे भी लगती है 
 मरहम क्या देगा
कोई उम्मीद तलक नहीं नहीं दिखती 
मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 
 


 
 Posts
Posts
 
 
 
