कभी कभी सोचता हूँ कि अगर दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे की शूटिंग बिहार या उत्तर प्रदेश में होती तो क्या चलती हुई ट्रेन को पकड़ने के लिए भागती सिमरन (काजोल) और उसे देख कर अपनी ही अदा में हाथ निकल कर उसे चढाने की कोशिश करता राज (शाहरुख़ खान) का वो प्यारा और युवाओं का मन मोहने वाला सीन बन पाता या फ़िल्म के आखिर में अमरीश पुरी का काजोल से कहना जा सिमरन जी ले अपनी ज़िन्दगी और काजोल दोबारा ट्रेन की तरफ़ भागती।
जी नही। उत्तर प्रदेश और बिहार में कुछ अलग सीन होता। शायद कुछ ऐसा शुरुआत में ट्रेन निकलती देख न काजोल भागती और न शाहरुख़ हाथ निकलकर पकड़ता क्योंकि या तो ड्राईवर चला कर २०० मीटर चलने के बाद ट्रेन रोक खड़ा हो जाता(मैंने अक्सर इस हालत को झेला है ) या शाहरुख़ वैक्यूम (ये शब्द मैंने ट्रेन में सुना है) लगा कर आराम से १० मिनट के लिए ट्रेन रोक लेता। आखिरी सीन में भी कुछ ऐसा ही होता।
ये सीन सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क देश के २ बड़े राज्यों की दास्ताँ है हो सकता है कुछ और में भी हो पर मैंने दूसरी जगह इसे झेला नही है। ट्रेन आती है लेट, चलती है लेट, चलकर रूकती है फिर लेट होती है। जगह जगह लोग अपना घर पास आते ही ट्रेन रोक लेते हैं ऐसा पहले बस में होता था कि मोहल्ला या गाँव पास आया तो बस रोक ली स्टेशन तक कौन जाए एक ही शहर में १०-२० जगह लोग बस रोकते थे। अब ट्रेन में भी ये हो रहा है। आखिरी में तो और मज़ा आता है जब ट्रेन स्टेशन के नज़दीक पहुच जाती है तो आउटर पर खड़ी हो जाती है। न तो उतरते बनता है kyoki ख़ुद को सभ्य नागरिक दिखाना पड़ता है और जब आखिरी में सभ्यता टूटने लगती है तो आउटर पर रेल पटरियों पर सुबह सुबह लोगों की नित्य क्रिया और उसके बाद का माहौल उतरने नही देता। ये हाल तब है जब रेल मिनिस्टर कम से कम बातों में ही दिल्ली में मंत्रालय में समय देते थे अब न जाने क्या होगा जब रेल मिनिस्टर ने कहा कि वो ज़्यादा समय पश्चिम बंगाल में रहेंगी। एक गुजारिश है कोई इस लेख को उन्हें न सुनाये नही तो मैडम का गुस्सा तो आप लोग जानते ही होंगे .........
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