Wednesday, October 8, 2008

जीवन की किताब

पन्ना पन्ना पलट के देखो
हर पन्ना इक दिन बीता है
किसी पन्ने पर है रामायण
तो किसी पर लिखी गीता है
मिलेगा मीठा झूठ भी इसमे
और किसी पर सच तीखा है
पन्ना पन्ना पलट के देखो
हर पन्ना इक दिन बीता है
राम बन फ़र्ज़ अदा किया है
की है कृष्ण सी अठखेलियाँ भी
पर छिपा लिया अंश रावण का
क्योंकि उसमे अहम् झूठा है
पन्ना पन्ना पलट के देखो
हर पन्ना इक दिन बीता है

नेताओं की वफादारी

एक दिन एक समारोह में
प्रस्तोता बन ससम्मान गए
सभासद से मंत्री बने
एक जजमान मिले
कलाई देख मैंने पूछा
ये रोलेक्स कहाँ से आई?
बोले ये है मेहनत की कमाई
पूछा आपकी या जनता की ?
उनके मुख पर नो कमेंट्स वाली मुस्कान आई
मैंने फिर सवाल दागा
आप गरीबी क्यों नही मिटाते हो?
वो बोले क्यों मुझे गद्दार बनाते हो
जिस तबके ने चुना है
उसी को मिटा दूंगा
तो अपने नेताई ज़मीर को
क्या जवाब दूंगा?