आजकल टीवी पर एक विज्ञापन आ रहा है जो काफी बढ़िया है। वो है पेट्रोल और कुकिंग गैस बचाने का विज्ञापन। एक बच्चा अपने पापा से ट्रैफिक में रुकी कार में कहता है की साइकिल रिपयेर की दुकान खोलेगा। उसके पापा के चौंकने पर वो कहता जिस तरह से लोग पेट्रोल बरबाद कर रहे हैं उससे एक दिन पेट्रोल ख़त्म हो जाएगा और लोग साइकिल चलाएंगे.......................पेट्रोल पम्प पे कम करने वाला और गैस डिलिवरी करने वाला २०% छूट की बात करता है। और पूछने पर सलाह देता है वो तो आपके हाथ में है। ४५ किमी /घंटे की स्पीड से गाड़ी चलने, सिग्नल पर इंजन बंद करने और कुकर का प्रयोग करने व् खाना ढककर पकाने से २०% गैस और पेट्रोल की बचत होगी।
अच्छा प्रयास है... पर जब मैं घर पर या किसी जानने वाले से पानी की बचत करने, बिजली बचाने आदि के बारे में कहता हूँ तो उन्हें मैं शायद दकियानूस लगता हूँ या वो मुझे भाषण देने वाला समझते हैं। पर मेरी बात नही सुनी जाती या वो भूल जाते हैं कुछ कहते हैं सिर्फ़ हमारे करने से क्या होगा?
कोई यहाँ कुछ करना नही चाहता ये बचत कितनी ज़रूरी है और कितनी बड़ी है ये बात पिज्जा खाने वाला, माल में घुमने वाला, कानो में बाली पहनने वाला और फटी जींस (स्टाइल के लिए) पहनने वाला लड़का, और ऐसे लड़को के साथ रहना पसंद करने वाली और अख़बार के सिर्फ़ पेज ३ पढने वाली लड़की, बेटे बेटी की शराब पीने को मामूली गलती और आज का दौर बताने वाले माता पिता शायद ही इसे समझे। हाँ विज्ञापन को देखकर उन्हें ये कांसेप्ट बढ़िया लग सकता है और ज़्यादा से ज़्यादा उन्हें इस field में करियर बनने की इच्छा हो सकती पर ...खैर मेरा मकसद तो इस विज्ञापन बनाने वाले, इसे जारी करवाने वालो का धन्यवाद् देना था क्योंकि उन्होंने मुझे दकियानूस साबित नही होने दिया...