Monday, December 31, 2012

जाऊं तोह जाऊं कहाँ  मैं रोऊँ तोह रोऊँ कहाँ 

जाऊं तोह जाऊं कहाँ 
मैं रोऊँ तोह रोऊँ कहाँ 
मेरा कान्धा तोह 
झूठे अपनों का रहा 
अपनी ज़रूरत पर 
हक जताऊं कहाँ 
दुनिया लुटा दी वफ़ा में 
बेवफाई को भुलाऊं कहाँ 
जाऊं तोह जाऊं कहाँ 
मैं रोऊँ तोह रोऊँ कहाँ 
मेरे तोह अश्कों पर भी 
रोक है ज़माने की 
मेरी हंसी है जरिया 
पैसा कमाने की 
मयस्सर नहीं मुझे एक रोज़ 
जो मेरा हो  
जी भर के रो लूँ जहां 
एक ठौर तोह मेरा हो 
मेरे अश्क अब बनके ज़हर 
मुझे मार रहे 
तेज़ाब की तरह 
मेरे सीने को काट रहे
आरे अब तोह निकालने दो 
इन अश्कों को अकेले में
चंद  घंटे चंद  पल अँधेरे में 
मालूम है ये दौर है 
रौशनी का 
कभी तोह अमावास की रात 
होगी यहाँ 
तब तलक जाऊं तोह  कहाँ 
मैं रोऊँ तोह रोऊँ कहाँ 


Friday, December 28, 2012

मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 

मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 
ये अजीब सी तसवीरें हैं 
उभरती मेरे ज़हन में 
इन्हें रोक ले 
वो नज़र भी नहीं मिलती 
मैं उलझा हूँ
न जाने कितने दर्द में 
सुलझा तो लूँ पर उस सिरे की 
डोर तलक नहीं मिलती 
मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 
मुझे इंसान समझे जो 
वोह इंसान नहीं मिला 
मुझे होता होगा दर्द 
ये ख्याल नहीं दिखा 
अश्क मेरे भी निकलते हैं 
चोट मुझे भी लगती है 
 मरहम क्या देगा
कोई उम्मीद तलक नहीं नहीं दिखती 
मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती