Friday, November 14, 2008

ऐ छोटू ज़रा इधर आना।

नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है,

मुट्ठी में है तकदीर हमारी.......

एक पुरानी भारतीय फ़िल्म का ये गीत भारत के बच्चों पर ही फिट नही बैठता। क्योंकि इनके हाथ की लकीरे किसी रेस्तरां में बर्तन धुलते धुलते घिस गई हैं या किसी गैराज आदि पर काम करते हुए उसकी कालिख में दब गई हैं। ये है हमारे देश का भविष्य जिसके उद्धार के लिए कई योजनायें चल रही हैं और आज कई की और की घोषणा भी हो सकती है क्योंकि आज हमारे देश में बालदिवस मनाया जा रहा है।

सभी को आज ही बच्चे याद आयेंगे और कल हम में से काफी फिर कल किसी चाय, गैराज, होटल में आवाज़ देंगे - ऐ छोटू ज़रा इधर आना। न जाने कितने ऐसे छोटू हैं जो अपना असली नाम पूछने पर छोटू ही बताते हैं भले ही उनका नाम इनके माँ बाप ने कुछ और ही रखा हो। ऐसे ही एक ८ साल के लड़के को मैंने हवा भरने की दुकान पर देखा लोग उसे छोटू बुला रहे थे पर किस्मत देखिये उस भारत के भविष्य की उसका नाम 'किस्मत' था। ज़रा कल से गौर कीजियेगा अपने आस पास के इन छोटुओं पर और उनसे उनका असली नाम पूछियेगा। शायद उसका नाम आपके अपने बच्चे सा होगा।

हल्ला बोलना होगा हमें इन छोटुओं के लिए इनके भविष्य के लिए पर उसके लिए किसी बाल दिवस का इंतज़ार न करियेगा...

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