Wednesday, July 8, 2009

मैं भीगा फ़िर भी....आँखों में पानी कम न था.

आज मेरे शहर में बारिश हो रही थी ऑफिस से लौटते वक्त रास्ते में कुछ लाइन दिमाग में आई वोही लिख रहा हूँ... शुरू की २ लाइंस किसी और की है वो भी ढंग से याद नही और लिखने वाले का नाम भी नही याद। आगे की लाइंस मेरी है। अगर अच्छा लगे तो कमेन्ट दीजियेगा.....

इस बार बादलों में कैसी साजिश हुई
मेरा घर छोड़ पूरे शहर में बारिश हुई।(ये किसी और की हैं)
मैं भीगा फ़िर भी
भले बादलों में षडयंत्र था
मेरे पास गम बहुत थे
और आँखों में पानी कम न था।
मैं रोया था
ये अल्फाज़ ठीक नही
वो आंसू नही थे
क्योंकि उसका उन्हें अहसास न था। ।

3 comments:

Anonymous said...

wo aansu nahi jiska unhe ahsas na tha...waah kya baat kahi hai..behtareen likha hai bhai

Anonymous said...

wo aansu nahi jiska unhe ahsas na tha...waah kya baat kahi hai..behtareen likha hai bhai

Udan Tashtari said...

हमने तो ये सुना था:

जाने कैसी बादलों के दरम्यान साजिश हुई
मेरा घर मिटटी का था, और उस पर ही बारिश हुई