Monday, July 6, 2009

सामाजिक मान्यता के लिए बच्चे गोद लेंगे...

होमोसेक्सुअल संस्कृति पर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद जो बहस देश में छिडी है वो लाजिमी है। कई न्यूज़ चैनल्स पर इस मुद्दे पर बहस चल रही है। सभी धर्मो के धर्म गुरु कोर्ट के फैसले से सहमत नही। कई सामाजिक कार्यकर्ता भी इस मुद्दे पर भी होमोसेक्सुअल के फेवर में दिखे। कुछ टीवी कलाकार भी ये कह रहे थे के कोई अपनी इच्छा से कुछ भी करे और इसमे किसी और को नुक्सान तो नही पहुच रहा फ़िर इसमे ग़लत क्या है? अपनी इच्छा से कोई कुछ करे ये सही नही।

कल को खुलेआम लोग सेक्स करने लगेंगे तो ये कहेंगे इसमे किसी का क्या नुक्सान इसे अश्लीलता के दायरे से हटाया जाए। क्या ये मान्य होगा? हमारा देश मर्यादा पुरषोत्तम को पूजता है। आखिर मर्यादा भी तो कुछ है।

परिवारवाद को नष्ट करने की शुरुआत है ये homosexual sanskriti पर होमोसेक्सुअल संस्कृति के पक्षधर का कहना है कि हम बच्चे गोद लेंगे। आज समाज को दिखने के लिए ये गोद तो लेंगे पर उसे माँ बाप दोनों का प्यार मिल पायेगा? एक तो समाज इनको अपना नही पाया है तो सोचिये उस बच्चे को क्या झेलना पड़ेगा जिसे ये अपना नाम देंगे। क्या सीखेगा वो? इनके रिश्ते ख़ुद कितने दिन चल पाते हैं ये भी सोचने लायक है। फिर क्या होगा उस बच्चे का?

न जाने कैसे उदाहरण दे डाले इन लोगो ने धार्मिक मान्यता पाने के लिए कि सुनकर हसी आ गई। कहा गया कि भगवान् श्रीकृष्ण भी तो अर्धनारेश्वर थे। शिखंडी का उदहारण दिया गया। अब कौन समझाए इन लोगो कि भाई/बहनों कि इसका अर्थ ये नही कि वो होमोसेक्सुअल थे। पहली बार मैंने सभी धर्मो को एक जुट देखा। उन्हें भी इस मुद्दे पर धर्म का ठेकेदार कहकर न जाने क्या साबित करने पर लगे थे। खैर मेरे हिसाब से तो ये ग़लत है और एक सामाजिक बीमारी है। अपने देश की संस्कृति और मानव समाज के लिए होमोसेक्सुअल संस्कृति को मान्यता देने ग़लत होगा।

3 comments:

ओम आर्य said...

गोद लेना तो अच्छी बात है पर सिर्फ समाजिक मान्यता निहित हो मुझे समझ मे नही आता ...........खैर एक अच्छी पोस्ट

Udan Tashtari said...

क्या कहें!!

Anonymous said...

यथार्थ और सुन्दर चित्रण किया आपने.......