Friday, December 28, 2012

मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 

मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 
ये अजीब सी तसवीरें हैं 
उभरती मेरे ज़हन में 
इन्हें रोक ले 
वो नज़र भी नहीं मिलती 
मैं उलझा हूँ
न जाने कितने दर्द में 
सुलझा तो लूँ पर उस सिरे की 
डोर तलक नहीं मिलती 
मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 
मुझे इंसान समझे जो 
वोह इंसान नहीं मिला 
मुझे होता होगा दर्द 
ये ख्याल नहीं दिखा 
अश्क मेरे भी निकलते हैं 
चोट मुझे भी लगती है 
 मरहम क्या देगा
कोई उम्मीद तलक नहीं नहीं दिखती 
मेरे हालात पर कोई ग़ज़ल नहीं मिलती 
जज़्बात लिख सके वोह कलम भी नहीं मिलती 

3 comments:

bravegirl@1234 said...

Kya baat kya baat kya baat..... :)

bravegirl@1234 said...

Kya baat kya baat kya baat..... :)

Anonymous said...

Tribute to victim of delhi gang rape....