धमाकों ने देश हिलाया
नदियों ने भी कहर ढाया
न जाने कितने अनाथ हुए
और कितने मांगे उजड़ गईं
उन उजड़ी मांगो के सामने
पूजा कर तिलक लगाता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
सहमी हुई साँसों को लिए
टूटे सपने टूटी आशायें भरी
उन घबराई पथराई सी आँखों को
इस आसमान में आखिर
आतिशबाजी दिखाता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
इन बेसहारा परिवारों में
अब भूखा बचपन सोता है
एक रोटी के टुकड़े के लिए
माँ से लड़कर वो रोता है
उन भूखी आँखों के सामने
रिश्तों में मिठाई बाँटता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
कुछ शर्म अभी भी बाकी थी
ज़मीर की इज्ज़त बाकी थी
अपनी ही आत्मा को
अपनी नज़रों में गिराता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
2 comments:
बहुत जबरदस्त!!
दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
Keep it up. i like your thoughts.
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