अपने प्यार को पाने उसे खुश रखने के लिए एक सीधा इन्सान क्या क्या नही करता किस तरह वो ख़ुद से लड़ता है? ये सब रब ने बना दी जोड़ी फ़िल्म में बखूबी निभाया गया। किस तरह वो प्यार को खुश रखने के लिए बदलता है पर अंत में वो चाहता है उसे प्यार उसी रूप में मिले जैसा वो है। ये एक सच है और ये होना भी चाहिए कुछ दिन पहले हिंदुस्तान अखबार में पढ़ा था कि ज्यादातर लड़कियों को बुरे लड़के पसंद आते हैं ये तभी समझ में आ गया था ये कुछ लड़कियों और बॉलीवुड अभिनेत्रियों पर आधारित लेख था। पढ़ के लगा कि सीधे पुरूष को प्यार पाना है तो बुरा बन जाना चाहिए क्योंकि उस लेख के अंत तक कोई संदेश नही था, सिर्फ़ लड़कियों की पसंद वाले पुरूष(बुरे), उनके कार्यों (बुरे) और उनके एक्साम्पल दिए थे। समझ नही रहा था कि अखबार की ज़िम्मेदारी क्या है? लोगों को या समाज को सुधारने की ? पत्रकारों तो मैं भी था। पत्रकारों को कभी कभी ख़बर से (मार्केटिंग विभाग की वजह से) समझौता भी करना पड़ता है पर उस लेख में उनकी क्या मजबूरी थी ये समझ में नही आया। एक गैर जिम्मेदार पत्रकारिता का एक्साम्पल लगा मुझे और एडिटोरिअल विभाग की लापरवाही दिखाई दी ... पर पाठक आज भी हिंदुस्तान अखबार का ही हूँ और इसी ये संदेश भी दिया है..... चलते चलते नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
Wednesday, December 31, 2008
Tuesday, December 30, 2008
भारतीय मीडिया का आतंक को समर्थन
Friday, November 14, 2008
ऐ छोटू ज़रा इधर आना।
नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है,
मुट्ठी में है तकदीर हमारी.......
एक पुरानी भारतीय फ़िल्म का ये गीत भारत के बच्चों पर ही फिट नही बैठता। क्योंकि इनके हाथ की लकीरे किसी रेस्तरां में बर्तन धुलते धुलते घिस गई हैं या किसी गैराज आदि पर काम करते हुए उसकी कालिख में दब गई हैं। ये है हमारे देश का भविष्य जिसके उद्धार के लिए कई योजनायें चल रही हैं और आज कई की और की घोषणा भी हो सकती है क्योंकि आज हमारे देश में बालदिवस मनाया जा रहा है।
सभी को आज ही बच्चे याद आयेंगे और कल हम में से काफी फिर कल किसी चाय, गैराज, होटल में आवाज़ देंगे - ऐ छोटू ज़रा इधर आना। न जाने कितने ऐसे छोटू हैं जो अपना असली नाम पूछने पर छोटू ही बताते हैं भले ही उनका नाम इनके माँ बाप ने कुछ और ही रखा हो। ऐसे ही एक ८ साल के लड़के को मैंने हवा भरने की दुकान पर देखा लोग उसे छोटू बुला रहे थे पर किस्मत देखिये उस भारत के भविष्य की उसका नाम 'किस्मत' था। ज़रा कल से गौर कीजियेगा अपने आस पास के इन छोटुओं पर और उनसे उनका असली नाम पूछियेगा। शायद उसका नाम आपके अपने बच्चे सा होगा।
हल्ला बोलना होगा हमें इन छोटुओं के लिए इनके भविष्य के लिए पर उसके लिए किसी बाल दिवस का इंतज़ार न करियेगा...
Tuesday, November 4, 2008
इस्लाम के लिए
न जाने क्यूँ काफ़ी दिनों से जितने भी इस्लाम को बचाने के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले समूह ( जिनके मुताबिक वो लोगों को इस्लाम से जोड़ने के लिए प्रयास कर रहे है, इस्लाम अन्य धर्मों के तुलना में सबसे बड़ा है जैसे नेक काम के लिए ये काम कर रहे) हैं से एक बात कहने का दिल कर रहा है। आज हर उस आतंकवादी संगठन के नाम ये संदेश, ये सुझाव है।
इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरान में लिखा है की शराब हराम है, नशा हराम है । पर इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वाले लोगों ने कभी शराब को दुनिया से हठाने की कोशिश नही की। अगर वो ऐसा करते हैं तो लाखों लोग जो इस्लामिक नही भी हैं वो भी इस्लाम की असलियत को जानेगे। क्योंकि अभी तक इस्लाम के लिए इन समूहों ने आतंक ज़्यादा फैलाया है, जिससे इस्लाम का प्रसार या रक्षा नही हुई पर बदनामी ज़रूर हुई। जिससे इस्लाम को मानने वाले बेक़सूर लोगो को भी शक की निगाह से देखा जा रहा है। इस्लाम पर खतरा मंडरा है।(padhe-hamarelafz.blogspot.com)
शराब पर अगर पाबंदी लगती है तो दुनिया की वो तमाम औरतें जो अपने पति के शराब पीने से तंग हैं, वो तमाम लोग जिनका घर शराब बर्बाद कर रही है, जो लोग बीमार हो गए हैं पर शराब नही छोड़ पर रहे, जो लोग शराब के नशे में हुई घटनाओ में कोई अपना खो चुके है, और न जाने कितने परिवार चाहे वो किसी भी धर्म के क्यों न हों इस कदम से इस्लाम की अहमियत को पहचानेगे तब मैं भी मानूंगा की ये समूह इस्लाम का प्रसार चाहते हैं।
क्या ऐसा कदम उठाने कोई समूह आगे आएगा? मैं इंतज़ार कर रहा हूँ। पर अभी भी किसी चैनल पर , या घर के बाहर कोई धरना प्रदर्शन नही दिख रहा। पर मैं इंतज़ार करूँगा ऐसे किसी कदम के उठने तक
Tuesday, October 28, 2008
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
धमाकों ने देश हिलाया
नदियों ने भी कहर ढाया
न जाने कितने अनाथ हुए
और कितने मांगे उजड़ गईं
उन उजड़ी मांगो के सामने
पूजा कर तिलक लगाता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
सहमी हुई साँसों को लिए
टूटे सपने टूटी आशायें भरी
उन घबराई पथराई सी आँखों को
इस आसमान में आखिर
आतिशबाजी दिखाता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
इन बेसहारा परिवारों में
अब भूखा बचपन सोता है
एक रोटी के टुकड़े के लिए
माँ से लड़कर वो रोता है
उन भूखी आँखों के सामने
रिश्तों में मिठाई बाँटता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
कुछ शर्म अभी भी बाकी थी
ज़मीर की इज्ज़त बाकी थी
अपनी ही आत्मा को
अपनी नज़रों में गिराता कैसे
आखिर मैं दिवाली मनाता कैसे
Wednesday, October 8, 2008
जीवन की किताब
हर पन्ना इक दिन बीता है
किसी पन्ने पर है रामायण
तो किसी पर लिखी गीता है
मिलेगा मीठा झूठ भी इसमे
और किसी पर सच तीखा है
पन्ना पन्ना पलट के देखो
हर पन्ना इक दिन बीता है
राम बन फ़र्ज़ अदा किया है
की है कृष्ण सी अठखेलियाँ भी
पर छिपा लिया अंश रावण का
क्योंकि उसमे अहम् झूठा है
पन्ना पन्ना पलट के देखो
हर पन्ना इक दिन बीता है
नेताओं की वफादारी
प्रस्तोता बन ससम्मान गए
सभासद से मंत्री बने
एक जजमान मिले
कलाई देख मैंने पूछा
ये रोलेक्स कहाँ से आई?
बोले ये है मेहनत की कमाई
पूछा आपकी या जनता की ?
उनके मुख पर नो कमेंट्स वाली मुस्कान आई
मैंने फिर सवाल दागा
आप गरीबी क्यों नही मिटाते हो?
वो बोले क्यों मुझे गद्दार बनाते हो
जिस तबके ने चुना है
उसी को मिटा दूंगा
तो अपने नेताई ज़मीर को
क्या जवाब दूंगा?
Saturday, October 4, 2008
मैं टल्ली हो गई......................
ये घटना काफ़ी हद तक झकझोर गई। मैं उस समय लुधिआना में एक पेज थ्री पार्टी में शामिल होने के उद्देश्य से था व् उससे पहले जयपुर, लखनऊ, नॉएडा और उसके बाद चंडीगढ़, दिल्ली और गुडगाँव में पार्टी में शामिल हुआ। इस दौरे और पटियाला की घटना से एक बात दिमाग में आई की क्या अब हमें अपनी ये सोंच बदलनी पड़ेगी की शादी के बाद बिगडे युवक सुधर जाते है क्योंकि जो हालत उन्हें सुधारने वाली लड़कियों की हो गई है उसे देख कर ये सोच बेमानी ही लगती है। कम कपडों में लड़कियों के हाथ में सिगरेट, शराब और देर रात बाद कुछ और घातक नशे करते देख खाकसार शर्मसार हो गया। ऐसा नहीं है की पुरुषों के नशे करने पर मुझे आपत्ति नहीं पर जिन स्त्रियों पर पुरषों को सुधारने की ज़िम्मेदारी होती है, जिनके सामने आकर पुरूष सुधर जाते हैं आज वो स्त्रियाँ पुरूष के साथ कदम से कदम मिलकर चलने के नाम पर उनकी बुराइयों को सीख झूठे सशक्तिकरण का अहसास करती हैं। आज कल हो रही इन पार्टियों में एन्जॉय के नाम पर जो हो रहा है वो काफ़ी खतरनाक है। शराब में के नशे में चूर यूथ जैसे मर्यादा ही भूल गया है, समाज के सामने एक दूसरे के कपड़े तक उतारने में भी शर्म नही आती। लड़कियों को बुरे शब्दों का प्रयोग करने में मज़ा आता है। देर रात तक चलने वाली इन पार्टियों में कई डिस्क और बार में मीडिया की एंट्री नही है और न ही कोई अपना व्यक्तिगत कैमरे प्रयोग कर सकता है क्योंकि ऐसी ही पार्टियों में कई लोग गैर आदमी औरत के साथ पेज थ्री में आकर अपना घर बरबाद कर चुके हैं।
इन डिस्क और बार को एन्जॉय करने का सुरक्षित स्थान कहा आता है जबकि ये गैर कानूनी काम करने का सुरक्षित स्थान है और यहाँ सफेदपोश लोग अय्याशियों को आधुनिकता का जामा पहनाते हैं।
लखनऊ और मुंबई में हाल ही में ऐसी ही पार्टियों में पड़ी रेड से जो सच सामने आए उससे सरकार को भारतीय संस्कृति और यूथ को बचाने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे और संस्कृति के रक्षक दलों को दूसरे धर्मों को नीचा दिखाना छोड़ इन घटनाओं को रोकना होगा। साथ ही हमें अपनी ज़िम्मेदारी तय करते हुए अपनी जीत के दिवस तक नशे और इस पार्टी संस्कृति की निंदा करनी चाहिए।
शहीद
शहादत
सिर्फ़ सरहदों पर होती है,
आज हर गली में
ईमानदारी शहीद होती है
क्यूँ ढूंढ रहे बेईमानी
झूटे सफेद्पोशों में
बगल में झांक लो
वहां भी छिपी होती है
अरे अब तो समझो
ये वतन तुम्हारा है
और कई हमवतनों को
रोटी नसीब नही होती है
किसी और इसकी
वजह न समझ
जो न किया तूने
वो फ़र्ज़ याद कर
देकर देख किसी ऐसे
बचपन को खुशी
जिसकी माँ हर रात
पानी पका कर र्रोती है